महापुरुष अच्युतानंद जी मालिका में इस प्रकार से लिखते हैं…
“तुलसी पतर गोटी-गोटी भासुथिब खीरनदी नामे एक नदी बहिब।”
अर्थात –
जिस छीरसागर का आह्वाहन प्रभुजी के द्वारा किया जाएगा उस पवित्र सागर के जल में माँ तुलसी के पत्र भी तिरते हुए भक्तजन देख पाएंगे, एवं उसी जल में भक्तजन स्नान करेंगे और दिव्य शरीर (किशोरावस्था) को प्राप्त करेंगे।