“एहि घोर कली लीला भली-भली प्राणी हेबे पथ बँणा।”
अर्थात –
कई चरणों में विभिन्न तरीके से माहाप्रभु की लीला होगी परंतु साधारण मनुष्य इसे अपने ज्ञान के आधार पर समझ नही पाएंगे।
कलियुग का अंत हो चुका है, यह एक सच्चाई है, अगर नही, तो आज सम्पूर्ण विश्व की स्थिति इस तरह से बदतर क्यों हो रही है? जब धर्मसंस्थापना होता है, जब युग के अंत का समय होता है, उसी दौरान मनुष्य समाज में बोहोत से परिवर्तन होते हैं महामारी, रोग, हिंसा, हादसा, युद्ध, आपदा यह सब अचानक से अपना पैर पसारने लगते हैं। इस तरह की घटनाएं समस्त संसार को अधिग्रहण करने लगते हैं। भय व अवसाद का वातावरण बनने लगता है प्रायः हर तरफ अशान्ति होने लगती है।
त्रेता में रावण की मृत्यु से पूर्व, और द्वापर में क्रूर कंस की मृत्यु से पूर्व मनुष्य समाज की जो परिस्थिति थी इसकी पुष्टि वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि जी के द्वारा भी की गई है, ठीक वैसी ही परिस्थिति मनुष्य समाज की आज वर्तमान समय में है।
रावण और कंस की मृत्यु के पश्चात वातावरण स्वयं स्थिर होने लगा मंद मलय पवन बहने लगी सूर्य की रौशनी शीतल होने लगी, समुद्र का जल मीठा (पीने लायक) हो गया, रोग महामारी समाप्त हो गई, सब ने यौवनावस्था को प्राप्त किया, सुख शांति पुनः अपना पैर पसारने लगी। इसलिए आज विश्व में जो भी अस्थिरता है वह केवल कल्कि लीला आर्थात विनाश लीला का हिस्सा है, यह समय बीतने के साथ और भी उग्र होता जाएगा व 2029 से 2030 तक यह धर्मसंस्थापना का कार्य यूँही चलता रहेगा, और मनुष्य समाज मे जन्म होने के कारण हमें भी यह देखना पड़ेगा।