महापुरुष एक बार फिर मालिका में इस प्रकार से लिखते हैं…
“माया अन्धकारे गुड़ी रहीथीबे अखिथाई सीजेकणा।”
अर्थात –
मनुष्य लोग माया में डूबे रहेंगे, उन्हें प्रत्येक वर्ष विभिन्न तरीकों से चेतावनी मिलती रहेगी, पर मनुष्य समाज के गर्व, अहंकार, छमता, अर्थ, सुख, शांति व दम्भ के चक्रव्यूह में फंसे होने के कारण यह भगवदवाणी उनके कानों तक नही पहुंचेगी।
महापुरुष इस तरह से दोबारा कहते हैं…
देखने वाले तो देख सकते हैं, परंतु जो नेत्रों के रहते भी अंधे हैं वो देख नही पाएंगे। जो अर्थ, गौरव और अपनी क्षमता के वजह से अंधे हैं उनके नेत्र होते हुए भी वो इन बदलावों को देखकर भी समझ नही पाएंगे।