हरे कृष्णा। मेरे इन शब्दों पर विचार करिएगा।
भागवत में लिखा है कलियुग के अंत समय में मनुष्यों का स्वभाव गधों जैसा दुःसह बन जाएगा, लोग प्रायः ग्रहस्थी का भार ढोने वाले और विषयी हो जाएँगे। और कलियुग में पाप की सभी हदें पार हो जाएगी। तब कल्कि भगवान धारा अवतरण करेंगे।
आज समाज में ऐसा कौनसा पाप होना बाक़ी रह गया है जिसकी हम प्रतीक्षा कर रहे है ? और कह रहे है कि कलियुग का तो अभी बाल्य काल है। आप सभी अपनी आँखें खोलें। आज जिस हम विज्ञान को अपने चारों तरफ़ देख रहे है ये तरक्की नहीं विनाश है क्यूँकि आज से 200 साल पहले ये सभी कुछ भी नहीं था। हम जिस समय में जी रहे है ये ही घोर कली-काल है।
भागवत महापुराण के प्रथम स्कंद में जब नारद मुनि भागवत पठान के लिए धरती पर उत्तम स्थान ढूँढ रहे थे तो उन्होंने कलियुग के अंत समय का व्याख्यान किया है जो भी आज के समय को ही बताता है। सनातनी लोगों अपनी आँखें खोलो और अपने चारों तरफ़ देखो क्या आज राशन बाज़ार में नहीं बिक रहा? क्या हर दूसरा मनुष्य मांस और मदिरा का भक्षण नहीं कर रहा? क्या मंदिर और मठों में धर्म के नाम पर व्यापार नहीं हो रहा? ये सवाल मेरे नहीं स्वयं नारद मुनि द्वारा कहे गए और भागवत महापुराण में लिखा है।
एक और बात पर विचार करिएगा कि जब भगवान राम आज से 10000 वर्ष पहले आए थे और भगवान श्री कृष्ण आज से 5000 वर्ष पहले आए थे तो कलियुग 432000 वर्ष का कैसे हो गया? द्वापर और त्रेता युग ने तो अपनी पूरी आयु का भोग ही नहीं किया तो सिर्फ़ कलियुग ही क्यू 432000 वर्षों का है? कलियुग में धर्म के नाम पर समाज में कई भ्रांतियाँ फैलाई जाएगी इस बारे में भी भागवत में लिखा है। मलेच्छों के आक्रमण से और अंग्रेज़ी हुकूमतों ने हमारे कई ग्रंथों को तो नष्ट ही कर दिया और अब जो अंत में बचा है क्या वो सम्पूर्ण सत्य है ? ज़रा विचार करिएगा। जब एक मनुष्य 100 वर्ष की आयु ले कर आता है और अपने कर्मों के कारण उसकी समय से पहले ही मृत्यु हो जाती है तो पाप कि अधिकता में युग कि आयु का क्षीण नहीं हो सकती क्या? जब स्वयं प्रभु श्री कृष्ण ने कहा है कि जब भी धर्म का नाश होगा मैं धरती पर अवतार ग्रहण करूँगा तो जब पाप कि अधिकता होगी तो क्या प्रभु युग के अंत होने तक कि प्रतीक्षा करेंगे?
ये तो धन्य हो उन पंचसखाओं का जिन्होंने भविष्य मालिका जैसे ग्रंथ को लिख भक्तों की चेतना को जागृत किया। धन्य है वे महा पुरुष उनको कोटि कोटि प्रणाम।
मेरे ऊपर लिखे शब्दों से अगर आपकी चेतना जागृत होती है तो बहुत अच्छा और अगर सब बकवास लगता है तो शायद आपके प्रारब्ध में नहीं।
जय श्री माधव