कलियुग के मध्य में सतयुग का आगमन


“कली थाउ-थाउ सत्य केहुदिन हेबो केहीण जाणबीर,
एणूकरी मोरो अंतना पाईबे नाथीबारु अधिकार।”

अर्थात –
कलियुग के अंत समय में कलियुग के मध्य धीरे-धीरे सत्ययुग का आगमन होगा। परंतु सभी इस दिव्य परिवर्तन को समझ नही पाएंगे। लोगों के द्वारा युग अंत के विषय में चर्चा करते-करते समय समाप्त हो जाएगा। मैं आ चुका हूँ, और मेरे आगमन (धरावतरण) का व मेरे द्वारा किस प्रकार से पृथ्वी पर धर्मसंस्थापना का कार्य सम्पन्न होगा, एवं मेरे भक्तों का उद्धार किस प्रकार से होगा,उन लोगों को इन गुप्त बातों का पता भी नही चल पाएगा। सभी अपने ज्ञान और तर्कों में उलझे रहेंगे मेरे अंत को कोई जान नही पायेगा, ज्यादातर लोग जो प्राचुर्य वैभव के लिए मनुष्य समाज में धर्म का व्यवसाय करते हैं। जो धर्म को ढाल बनाकर अपने व अपने परीवार के आनंद और उल्ल्हास के लिए धन एकत्रित करते हैं। ऐसे अधर्मी मनुष्यों को धर्म कार्य, धर्मसंस्थापना और मेरे धरावतरण के विषय में किसी भी प्रकार से जानकारी पाने का कोई अधिकार नही है।

इसपर पक्षीराज गरुड़ श्रीभगवान से इस प्रकार से प्रश्न करते हैं…

हे चराचर जगत के नाथ, दिनो के बंधु दीनानाथ प्रभो इस कलियुग का अंत कब होगा, एवं मृत्युलोक (पृथ्वी) पर आपका धरावतरण कब होगा और जब आप का धरावतरण होगा तब भक्तों का उद्धार कैसे होगा कृपाकर मुझे यह बतलाइये ?

इस पर स्वयं चक्रधर कमल नयन भगवान! महाविष्णु इस प्रकार से पक्षीराज गरुड़ के सभी प्रश्नों के उत्तर देते हैं…

देखो गरुड़, कलियुग के अंतिम समय में पांच हजार वर्ष बीत जाने पर जब चंद्रमा से लगे तारे का उदय होगा अर्थात (वर्ष 2005 में मनुष्यों ने चंद्रमा के समीप एक तारे का लगभग दो महीनों तक अपने नेत्रों से दर्शन किया था) एवं श्रीजगन्नाथ खेत्र पूरी के चलन्ति प्रतिमा जिन्हें ठाकुर, “राजा दिव्य सिंह देब” के नाम से जाना जाता है उनके 47 अंक पूरे होंगे तब मैं भक्तों के उद्धार के लिए धरावतरण करूंगा, इस विषय में स्पष्ट सब्दों में मालिक में भी वर्णित है।

पक्षीराज गरुड़ एक बार पुनः श्रीभगवान से इस प्रकार से कहते हैं, कि हे जगत के तारणहार! प्रभु भक्तों को आपके अवतरण की जानकारी कैसे प्राप्त होगी कृपा कर मार्गदर्शन करें ?

तब एक बार पुनः दीनानाथ अपने गंभीर स्वर में गरुड़ जी से इस प्रकार से कहते हैं…

हे गरुड़, इस गुढ़ रहस्य को कलियुग की भीषण ज्वाला में जल रहे सभी मनुष्य समझ नही पाएंगे, एवं सुख, संभोग और उपार्जन में जो लोग लगे होंगे वो मेरा अंत नही पाएंगे, ऐसे लोग इन गुढ़ बातों को जानने के अधिकारी नही होंगे। ऐसे लोग मेरे बैकुंठ या गोलोक के निवासी नही होंगे। इसलिए पूर्व से जो बैकुंठ या गोलोक के निवासी होंगे, जो देवता, यक्ष या गंधर्वों में से होंगे, केवल उन्ही भक्तों को मालिका के प्रचार के माध्यम से मेरे धरावतरण की सूचना प्राप्त होगी। और वही भक्तजन धर्मसंस्थापना के कार्य में मेरा सहयोग देंगे।

इस प्रकार से भगवान के द्वारा बताई व मालिका में वर्णित सभी निशानियां चंद्रमा से लगे तारे के तौर पर, या राजा दिव्य सिंह देब के 47 अंकों के तौर पर, वर्ष 2005 में पूर्ण हो चुकी है एवं वर्तमान में श्रीभगवान का धरावतरण भी हो चुका है।

पंच सखाओं में से एक महापुरुष शिशु अनन्त दास जी के द्वारा लिखी मालिका में प्रभु के धरावतरण की एक और निशानी इस प्रकार से वर्णित है।

“कर जोड़ी बोले बारंग भगत शेखर मुकुट मणि,
बेलकला जाणी कलपतरुरे गरल फलिबे पुनि,
एण पराएक होइबो बारंग रस मधुरो लागिबे,
आदोरे भकईबे कलीजुगे नरे भकी भस्म होइजिबे।”

अर्थात –
कलियुग अंत और प्रभु के धरावतरण के समय में एक संकेत इस प्रकार से पूर्ण होगा, की नीम के पेड़ से दूध के जैसा तरल प्रदार्थ बहेगा, उसका स्वाद मधु के समान मीठा होगा, और लोग चमत्कार समझ कर उसका पान करेंगे, एवं उस पेड़ की पूजा भी करेंगे, ऐसे लोगों को मृत्यु ग्रास करेगी, यह संकेत भी कई स्थानों पर देखी गई है।

इन संकेतों के बाद कलियुग के अंत में प्रभु के धरावतरण की बात मालिका और अन्य शास्त्रों में कही गई है। वर्तमान में ये सभी संकेत पूर्ण भी हो चुके हैं, एवं भगवान कल्कि का धरावतरण भी हो चुका है व धर्मसंस्थापना और विनाशलीला के कार्य भी अपने रास्ते पर चल रहे हैं, वर्तमान समय में इसके असर वैश्विक स्तर पर दिखने भी लगे हैं।